INSAAN

मानता हूँ इंसान कुछ साथ नहीं लेकर जाता , मगर छोड़ कर तो जाता हैं| एहसास, याद, तस्वीरें, कितना कुछ पीछे रह जाता हैं| ये एहसास उन चीज़ों में होता हैं, जो वो इंसान अकसर इस्तेमाल करता था, रोज़मर्रा के जीवन में| आम सी वस्तु, जिनकी हम कदर नहीं करते, अकसर उन्हीं में जा बस्ता हैं ये एहसास| चपलमें, कपड़ोंमें, कलममें, डायरीमें, लॉकेट में और ऐसी ही अन्य चीज़ों में| ये एहसास उन लोगों के काम आता हैं जिनसे हमें स्नेह होता हैं| हमारे जाने के बाद वो हमें इन्हीं चीज़ों में ढूंढेंगे| मेरा मसला ये हैं की आज कल के लोग, जो हर हफ़्ते ऐसी चीज़ें बदल देते हैं, फेंक देते हैं, उनका एहसास उन के अपनों को कहाँ मिलेगा और कैसे मिलेगा| खैर वो तो फिर भी आगे की बात रही, आज कल तो जीते-जी लोग पास नहीं हैं| चले गए अपनों को पीछे छोड़ के, उस देश जहां पैसे हैं, आयशी हैं, आराम हैं| अब किसे फ़र्क़ पड़ता हैं, सब बेगाने और घर वीरान| क्या यही था जीवन का उदेश्य, मंज़िल तो पहुंच गए, अपने कहाँ है? ये वक़्त जो हमने युहीं लोगों में बाट दिया, ये वक़्त अपनों का था|
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